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खुलासा- भारत में बलात्कार पीड़ितों की चिकित्सा जांच में जाती है दिशानिर्देशों की अनदेखी

नई दिल्ली/टीम डिजिटल। अध्ययन कानून और न्याय मंत्रालय विभाग और संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) की सहायता से गैर सरकारी संगठन ‘पार्टनर्स फॉर लॉ इन डेवलपमेंट’ ने बलात्कार पीड़ितों की चिकित्सा जांच पर एक रिपोर्ट पर पेश कर चौका दिया है। जिसमें बताया गया है कि कुछ बलात्कार पीड़िताओं को प्राथमिकी दर्ज कराने में पुलिस के हाथों उत्पीड़न और अवरोध का अनुभव भी करना पड़ा।

रिपोर्ट के एक अध्ययन मे दावा किया गया है कि भारत में बलात्कार पीड़ितों की चिकित्सा जांच स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा निर्धारित दिशानिर्देशों के अनुरूप नहीं की जाती है। अध्ययन में इस प्रकार की चिकित्सा जांच करने के लिये स्वास्थ्य कर्मियों को समुचित प्रशिक्षण प्रदान करने की मांग की गयी है।

पुलिस के हाथों होता है उत्पीड़न

यह अध्ययन कानून और न्याय मंत्रालय के न्याय विभाग और संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) की सहायता से गैर सरकारी संगठन ‘पार्टनर्स फॉर लॉ इन डेवलपमेंट’ ने किया है। इस अध्ययन में यह भी पाया गया कि कुछ बलात्कार पीड़िताओं को प्राथमिकी दर्ज कराने में पुलिस के हाथों उत्पीड़न और अवरोध का अनुभव भी करना पड़ा।

फोरेंसिक जांच में की जाती है लापरवाही

अध्ययन रिपोर्ट में बलात्कार पीड़िता के केवल उन्हीं कपड़ों को फोरेंसिक जांच के लिये भेजने की अनुशंसा की गयी है, जोकि उस अपराध से जुड़े हों। इसके अलावा बलात्कार पीड़िता अथवा उसके गवाह एवं उसके रिश्तेदारों को सुरक्षा प्रदान करने की जरूरत पर जोर दिया गया है। अध्ययन में जिन मामलों को शामिल किया गया है, वे परिचितों द्वारा बलात्कार से संबंधित हैं। रिपोर्ट के अनुसार भारत और दुनिया भर में होने वाले बलात्कार के अधिकतर मामले इसी श्रेणी में आते हैं।

प्राथिमिकी जांच में झेलनी पड़ता दर्द

अध्ययन के मुताबिक, प्राथिमिकी की प्रति तुरंत उपलब्ध नहीं करायी जाती है और अक्सर पीड़िताओं को इसकी प्रति हासिल करने के लिये पुलिस का चक्कर लगाना पड़ता है। हालांकि बाद में प्राथिमिकी की एक प्रति पीड़ितों को भेज दी जाती है।

निर्धारित दिशानिर्देशों का नहीं किया जाता है पालन

अध्ययन में कहा गया है कि ये स्वास्थ्य जांच स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा निर्धारित दिशानिर्देशों में अनुरूप नहीं की जाती हैं। इसमें कहा गया है कि औपचारिक तौर पर बलात्कार पीड़िताओं से स्वास्थ्य जांच की सहमति नहीं ली जाती है और अक्सर ही इसके लिए बाद में उनके हस्ताक्षर अथवा अंगूठे के निशान ले लिए जाते हैं।

मुकदमे के दौरान अदालत में लगे कैमरा के माध्यम सेअभियोजन पक्ष को अदालत में आरोपी की धमकी से बचाया जाता है। रिपोर्ट में दिल्ली में चार त्वरित अदालतों में चल रहे 16 मामले को शामिल किया गया था।

Source: https://www.navodayatimes.in/